गायत्री महाविज्ञान अनुभूत प्रयोग - रोग एवं विष निवारण

गायत्री महाविज्ञान अनुभूत प्रयोग - रोग एवं विष निवारण :

रोग निवारण --
        स्वयं रोगी होने पर जिस स्थिति में भी रहना पड़े ,उसी में मन ही मन गायत्री का जाप करना चाहिये । एक मन्त्र समाप्त होने और दूसरा आरम्भ होने के बीच  में  एक "बीज मंत्र" का सम्पुट भी लगाते चलना चाहिये । सर्दी प्रधान (कफ) रोग में 'एं ' em बीज मन्त्र ,गर्मी प्रधान पित्त रोगों में 'ऐं ' aim बीज मन्त्र, अपच एवं विष तथा वात रोगों में 'हूं ' hoom बीज मन्त्र का प्रयोग करना चाहिये । निरोग होने के लिए वृषभ -वाहिनी हरित वस्त्रा गायत्री का ध्यान करना चाहिये ।    
दूसरो को निरोग करने के लिए भी इन्ही बीज मन्त्रो का और इसी ध्यान का प्रयोग करना चाहिये । रोगी के पीड़ित अंगो पर उपर्युक्त  ध्यान और जप करते हुए हाथ फेरना, जल अभिमन्त्रित करके रोगी पर मार्जन देना एवं छिडकना चाहिये । इन्ही परिस्थतियो में  तुलसी पत्र और कालीमिर्च  गंगाजल में पीसकर दवा के रूप में देना ,यह सब उपचार ऐसे है ,जो किसी भी रोग के रोगी को दिये जाए ,उसे लाभ पहुचाये बिना न रहेंगे । 

विष-निवारण --
         सर्प, बिच्छू, बर्र,ततैया ,मधुमक्खी  और जहरीले जीवों के काट लेने पर बड़ी पीड़ा होती है । साथ ही शरीर में विष फैलने से मृत्यु हो जाने की सम्भावना रहती है, इस प्रकार की घटनाये घटित होने पर गायत्री शक्ति द्दारा उपचार किया जा सकता है । 
    पीपल वृक्ष की समिधाओ से विधिवत हवन करके उसकी भस्म को सुरक्षित रख लेना चाहिये । अपनी नासिका का जो स्वर चल रहा है उसी हाथ पर थोड़ी-सी भस्म रखकर  दूसरे हाथ से उसे अभिमन्त्रित करता चले और बीच में  'हूं ' hoom बीजमन्त्र का सम्पुट लगावे  तथा रक्तवर्ण अश्र्वरुढr गायत्री का ध्यान करते हुए उस भस्म को विषैले कीड़े के काटे हुए स्थान पर दो-चार मिनट मसले । पीड़ा में जादू के समान आराम होता है । 
     सर्प के काटे हुए स्थान पर रक्त चन्दन से किये हुए हवन की भस्म मलनी चाहिये और अभिमंत्रित  करके घृत पिलाना चाहिये । पीली सरसों अभिमन्त्रित करके उसे पीसकर दशों इन्द्रियों के द्दार पर थोडा-थोडा लगा देना चाहिये । ऐसा करने से सर्प -विष दूर हो जाता है । 





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