गायत्री महाविज्ञान अनुभूत प्रयोग - दूसरो को प्रभावित करना एवं रक्षा-कवच !!

दूसरो को प्रभावित करना --
            जो व्यक्ति अपने प्रतिकूल है उन्हें अनुकूल बनाने के लिये,उपेक्षा करने वालो में प्रेम उत्पन्न करने के लिये गायत्री द्दारा आकर्षण क्रिया की जा सकती  है। वशीकरण तो घोर तांत्रिक क्रिया द्दारा ही होता है, पर चुम्बकीय आकर्षण , जिससे किसी  व्यक्ति का मन अपनी ओर सदभावनापूर्वक आकर्षित हो, गायत्री की दक्षिण मार्गी इस योग-साधना से हो सकता है।
      गायत्री मन्त्र का जप तीन प्रणव लगाकर करना चाहिये की अपनी त्रिकुटी (मस्तिष्क के मध्य भाग) में से एक नील वर्ण विघुत-तेज की रस्सी जैसी शक्ति निकलकर उस व्यक्ति तक पहुचती है,जिसे आपको आकर्षित करना है और उसके चारों ओर अनेक लपेट  मारकर लिपट जाती है। इस प्रकार लिपटा हुआ व्यक्ति अर्द्धतंद्रित अवस्था में धीरे-धीरे खिंचता चला आता है और  अनुकूलता  की प्रसन्न मुद्रा उसके चेहरे पर छाई हुई होती है। आकर्षण के लिये यह ध्यान बड़ा प्रभावशाली है ।
किसी के मन में , मस्तिष्क में से उसके अनुचित विचार हटाकर उचित विचार भरने हो, तो ऐसा करना चाहिए कि शान्तचित्त  होकर उस व्यक्ति को अखिल नील आकाश में अकेला सोता हुआ ध्यान करे और भावना करे कि उसके कुविचारो को हटाकर आप उसके मन में सद्विचार भर रहे है। इस ध्यान-साधना के समय अपना शरीर भी बिलकुल शिथिल और नील वस्त्र से ढका होना चाहिए  ।

 रक्षा-कवच --
            किसी शुभ दिन उपवास रखकर केशर ,कस्तूरी, जायफल, जावित्री,गोरोचन इन पाँच चीजो के मिश्रण की स्याही बनाकर अनार की कलम से पाँच प्रणव संयुक्त गायत्री मंत्र बिना पालिश किये हुए कागज या भोज-पत्र पर लिखना चहिये। कवच चाँदी के ताबीज में बंद करके जिस किसी को धारण कराया जाए , उसकी सब प्रकार की रक्षा करता है। रोग, अकाल , मृत्यु ,शत्रु,चोर,हानि,बुरे दिन,कलह,भय,राज्य दण्ड,भुत-प्रेत ,अभिचार आदि से यह कवच रक्षा करता है। इसके प्रताप और प्रभाव से शारीरिक ,आर्थिक और मानसिक सुख साधनों में वृद्धी होती है।
          काँसे की थाली में उपर्युक्त प्रकार से गायत्री मन्त्र लिखकर उसे प्रसव-कष्ट से पीड़ित प्रसूता को दिखाया जाय और फिर पानी में घोलकर उसे पिला दिया जाय तो कष्ट दूर होकर सुख-पूर्वक  शीघ्र प्रसव हो जाता है।






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